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शुक्रवार, 3 नवंबर 2017

आरक्षण पर सवाल

                     आरक्षण पर सवाल
मैं बात करने जा रहा हूँ उसी आरक्षण की जो अपने ही लोगों का हक़ मार रही है जिसे राजनीतिक पार्टियां बड़े चाव से खाती व परोसती है हाँ यह वही आरक्षण है जिसको लेकर उच्चतम न्यायालय भी अपने प्रश्नो से वंचित न रह सका।
बात पिछले दिनों की है जब पदोन्नति में आरक्षण के मसले पर एक याचिका की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट को अनुसूचित जातियों और जनजातियों के आरक्षण में क्रीमी लेयर की याद तो आई।
नही तो शायद कितने साल और लग जाते इस मंद सोच को पनपने में।                      
                                                      

ये लोग अपने ही लोगों का हक खा कर डकार भी नही लेते और डकार आये भी क्यों सवाल आज जो आया है?
और हर राज्य में किसी न किसी को आरक्षण की भूख लगीं बैठी है जो न तो वंचित शोषित तबके में आते है और न ही सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों में चुकी राजनीतिक दल आरक्षण मांग रहे समुदायों को नाराज करने की स्थिति में नही होते इसलिए वे उनकी मांग का विरोध भी नही कर पाते ।
एक समस्या यह भी है कि वे वोट बैंक बानने के फेर में आरक्षण की मांग करने वाले समुदाय के समर्थन में खड़े हो जाते है
                     
                     सवाल सुप्रीम कोर्ट का
जब सरकार द्वारा एक आयोग बनाकर ओबीसी आरक्षण का वर्गीकरण करने की पहल की और इसके लिए एक आयोग का गठन भी कर दिया। तभी यह सवाल उठा था कि यदि ओबीसी आरक्षण का वर्गीकरण किया जा सकता है तो एससी-एसटी का क्यो नही? इस सवाल पर किसी ने ध्यान नही दिया       
                                                                      
लेकिन सुप्रीम कोर्ट के  इस सवाल की अनदेखी करना मुश्किल है
इसी सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट का  यह सवाल है कि क्या एससी-एसटी वर्ग के सामाजिक,शैक्षणिक एवम आर्थिक रूप से योग्य हो चुके लोग अपने लोगों का अधिकार नहीं छीन रहे है

आरक्षण में क्रीमी लेयर
ओबीसी आरक्षण की तरह एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर का प्रावधान क्यों नही है? एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर का प्रावधान न होना इसलिये एक तार्किक सवाल है, क्योंकि ओबीसी आरक्षण में उक्त प्रावधान शामिल है। यह प्रावधान इस लिए बनाया गया था ताकि ओबीसी के सम्पन लोगों को आरक्षण का लाभ उठाने से रोक जा सके

क्योंकि ओबीसी आरक्षण की तुलना में एससी-एसटी आरक्षण बहुत पहले से लागू है तो क्या बीते सात दशको में आज तक कोई एससी-एसटी में सामाजिक,शैक्षणिक और आर्थिक रूप से सम्पन नही हो पाया है अगर सम्पन नही हुआ तो फिर इसका मतलब यह कि आरक्षण उपयोगी साबित नही हो रही है अगर सम्पन लोग सामने आए तो इस का क्या औचित्य की पीढ़ी दर पीढ़ी ये आरक्षण का लाभ उठाते रहे?
दुर्भाग्य से जिन्हें यह सवाल करना चाहिए वह तो अपनी रोटियां इसी आग में सेक रहे है

एक सवाल और
आरक्षण को लेकर एक सवाल यह भी है कि प्रतिभा को नकारने वाली आरक्षण व्यवस्था कहा तक उचित है जब शिक्षा संस्थानों में भी आरक्षण दिया जा रहा है तो फिर नौकरियों में आरक्षण का क्या औचित्य?
यह सही समय है कि राजनीतिक वर्ग इस पर सहमत हो कि आरक्षण को इस रूप में लागू करने की आवश्यकता है जिससे एक तो पात्र लोग ही लाभान्वित हो सके और दूसरे प्रतिभा की उपेक्षा न हो ।
ऐसी व्यवस्था का निर्माण तभी संभव होगा जब यह स्वीकार किया जाएगा कि आरक्षण की मौजूदा व्यवस्था में कई विसंगतिया घर कर गई है और वो समाज व देश को प्रभावी कर रही है।

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