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गुरुवार, 19 मई 2022

कभी-कभी

कभी-कभी खुद पर मर जाने का मन करता है,
और कभी अपने ही गमों से बातें का मन करता है,

कभी-कभी अपनी हँसी पर रूठ जाने का मन करता है
और कभी पूरे जग को हँसाने का मन करता है,

कभी-कभी लाख गमों पर भी आँसू नहीं आते 
और कभी बेवजह आँसू बहाने का मन करता है,

कभी-कभी अपनों से दूर जाने का मन करता है
और कभी किसी के बाहों में समा जाने का मन करता है,

कभी-कभी खुद से रूठ जाने का मन करता है
और कभी उसकी सासों में समा जाने का मन करता है।




मंगलवार, 10 मई 2022

कविता

 यार बड़े पछताओगे
जो बीत गया उसे कभी वापस न ला पाओगे
जो दिल में प्रेम भरा था
उसे कभी वापस न पाओगे
यार बड़े पछताओगे।

सब छोड़ यार तुम जब मयख़ाने में जाओगे
दो बूंद-दो बोतल से सारे गम जिस दिन धुल आओगे
यार बड़े पछताओगे।

फिर भी अपनों के बिन,तुम कहाँ तक चल पाओगे
चलो मान लिया,तुम दूर तलक चले जाओगे
पर वह वक़्त कहाँ से लाओगे
जो बीत गया उसे कभी वापस न ला पाओगें,
यार बड़े पछताओगे ।
यार बड़े पछताओगे।।

जब उम्र की सीढ़ी पर चढ़ तुम,
आगे निकल जाओगे
शानो-शौक़त और शोहरत के दिनों में ,
ये सब कुछ भूल जाओगें 
लेकिन जब गांव की मिट्टी 
माँ की सोंधी रोटी याद तुमको आयेगी।
तो वह वक़्त कहाँ से लाओगे
जो बीत गया उसे कभी,वापस न ला पाओगे
यार बड़े पछताओगे
यार बड़े पछताओगे

जब उम्र की सीमा पर चढ़ तुम,
जिस वक़्त मौत को गले लगाओगे,
इन ग़मों के सागर में तुम डूब कर क्या ,जो बीत गया उसे कभी वापस ला पाओगें
यार बड़े पछताओगे
यार बड़े पछताओगे।...