पिता
मैं आज कुछ पंक्तिया पिता पर निवेदित करने जा रहा हूँ जब पूरा ब्रह्माण्ड उद्गोष करता है तो माँ जन्म लेती है परंतु ये भी कहने में अतिशयोक्ति न होंगी की पिता सृष्टि में निर्माण कि अभिव्यक्ति है।
बहुत लोग कहते है कि भगवान है तो सब कुछ है और सब कुछ हो जाएगा।
पर मेरा मानना है कि भगवान का ही दूसरा रूप धरती पर पिता का है जो अपने बच्चों को कभी किसी चीज़ की कमी महसूस तक न होने देता है।
भले ही उस पर कितनी ही विपत्तियों का पहाड़ ही क्यो न टूट पड़ा हो।
पिता अपनी इच्छाओं का हनन व परिवार की पूर्ति है।
मैं आज कुछ पंक्तिया पिता पर निवेदित करने जा रहा हूँ जब पूरा ब्रह्माण्ड उद्गोष करता है तो माँ जन्म लेती है परंतु ये भी कहने में अतिशयोक्ति न होंगी की पिता सृष्टि में निर्माण कि अभिव्यक्ति है।
बहुत लोग कहते है कि भगवान है तो सब कुछ है और सब कुछ हो जाएगा।
पर मेरा मानना है कि भगवान का ही दूसरा रूप धरती पर पिता का है जो अपने बच्चों को कभी किसी चीज़ की कमी महसूस तक न होने देता है।
भले ही उस पर कितनी ही विपत्तियों का पहाड़ ही क्यो न टूट पड़ा हो।
पिता अपनी इच्छाओं का हनन व परिवार की पूर्ति है।