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मंगलवार, 7 जनवरी 2025

पिता

                              पिता

मैं आज कुछ पंक्तिया पिता पर निवेदित करने जा रहा हूँ जब पूरा ब्रह्माण्ड उद्गोष करता है तो माँ जन्म लेती है परंतु ये भी कहने में अतिशयोक्ति न होंगी की पिता सृष्टि में निर्माण कि अभिव्यक्ति है।
 बहुत लोग कहते है कि भगवान है तो सब कुछ है और सब कुछ हो जाएगा।
पर मेरा मानना है कि भगवान का ही दूसरा रूप धरती पर पिता का है जो अपने बच्चों को कभी किसी चीज़ की कमी महसूस तक न होने देता है।
भले ही उस पर कितनी ही विपत्तियों का पहाड़ ही क्यो न टूट पड़ा हो।
 पिता अपनी इच्छाओं का हनन व परिवार की पूर्ति है।

गुरुवार, 19 मई 2022

कभी-कभी

कभी-कभी खुद पर मर जाने का मन करता है,
और कभी अपने ही गमों से बातें का मन करता है,

कभी-कभी अपनी हँसी पर रूठ जाने का मन करता है
और कभी पूरे जग को हँसाने का मन करता है,

कभी-कभी लाख गमों पर भी आँसू नहीं आते 
और कभी बेवजह आँसू बहाने का मन करता है,

कभी-कभी अपनों से दूर जाने का मन करता है
और कभी किसी के बाहों में समा जाने का मन करता है,

कभी-कभी खुद से रूठ जाने का मन करता है
और कभी उसकी सासों में समा जाने का मन करता है।




मंगलवार, 10 मई 2022

कविता

 यार बड़े पछताओगे
जो बीत गया उसे कभी वापस न ला पाओगे
जो दिल में प्रेम भरा था
उसे कभी वापस न पाओगे
यार बड़े पछताओगे।

सब छोड़ यार तुम जब मयख़ाने में जाओगे
दो बूंद-दो बोतल से सारे गम जिस दिन धुल आओगे
यार बड़े पछताओगे।

फिर भी अपनों के बिन,तुम कहाँ तक चल पाओगे
चलो मान लिया,तुम दूर तलक चले जाओगे
पर वह वक़्त कहाँ से लाओगे
जो बीत गया उसे कभी वापस न ला पाओगें,
यार बड़े पछताओगे ।
यार बड़े पछताओगे।।

जब उम्र की सीढ़ी पर चढ़ तुम,
आगे निकल जाओगे
शानो-शौक़त और शोहरत के दिनों में ,
ये सब कुछ भूल जाओगें 
लेकिन जब गांव की मिट्टी 
माँ की सोंधी रोटी याद तुमको आयेगी।
तो वह वक़्त कहाँ से लाओगे
जो बीत गया उसे कभी,वापस न ला पाओगे
यार बड़े पछताओगे
यार बड़े पछताओगे

जब उम्र की सीमा पर चढ़ तुम,
जिस वक़्त मौत को गले लगाओगे,
इन ग़मों के सागर में तुम डूब कर क्या ,जो बीत गया उसे कभी वापस ला पाओगें
यार बड़े पछताओगे
यार बड़े पछताओगे।...




गुरुवार, 30 दिसंबर 2021

बोरसी की आग

 बोरसी नाम सुना-सुना लग रहा होगा। शहरों में बस चुके जिन लोगों की जड़े गाँवों में हैं उन्हें पता होगा ।
उन्हें जाड़े की रातों में बोरसी की आग की स्मृतियां भूली नहीं होंगी । घर के दरवाजे पर या दालान(बरामदा) में बोरसी का मतलब सम्पूर्ण सुरक्षा ।
अब शहरों या गाँवों में भी पक्के, सुंदर घरों वाले लोग धुंए से घर की दीवारें काली पड़ जाने के डर से बोरसी नहीं सुलगाते, उसकी जगह रूम हीटर ने ले ली।
लेकिन गांव के मिट्टी या खपरैल मकानों में ऐसा कोई डर नहीं होता था।
बुजुर्ग कहते थे, दरवाजे पर अगर बोरसी की आग हो तो ठंड ही नहीं भागती बल्कि घर में साँप बिच्छु और भूत-प्रेत का प्रवेश भी बंद हो जाता है।
सार्वजनिक जगहों पर जलने वाले अलाव जहाँ गांव-टोले के चौपाल होते थे, तो बोरसी को पारिवारिक चौपाल का दर्जा हासिल था घर की बड़ी से बड़ी समस्या भी इस पारिवारिक चौपाल के इर्द-गिर्द सुलझ जाती थी
बिस्तर पर जाते समय बोरसी की आग बुजुर्गों या बच्चों के बिस्तरों के पास रख दी जाती थी।
आज के युवाओं और बच्चों के पास बोरसी की यादें भी नहीं हैं जिन लोगों ने बोरसी की गर्मी और रूमान महसूस किया है, उनके पास घर की डिजाइनर दीवारों और छतों के नीचे बोरसी की आग सुलगाने की आजादी अब नहीं रही।

गुरुवार, 27 मई 2021

कोरोना महामारी

क्या कहूँ और कैसे ? कुछ समझ नहीं आ रहा।
इतना भयावह निर्मम और क्रूर मंजर शायद किसी ने कभी सोचा भी नहीं होगा। 
इस महामारी ने स्प्ष्ट कर दिया कि हम दुर्दशा  के उस दौर में जी रहे हैं जहाँ जन-धन-बल सब बेकार हो चुका है।
हम सभी का दुर्भाग्य तो देखिए हम यह भी नहीं जानते है, कि इस क्रूर बला से मुक्ति कब मिलेगी, विशेषज्ञ तो यह बता रहे है कि यह दूसरी लहर का प्रकोप है तीसरी और चौथी अभी आनी बाक़ी है।
अब कोई सवाल भी नहीं बचा किसी महाशय से पूछने
 को , और इसके जिम्मेदार वहीं लोग है जो यह जानते थे कि दूसरी लहर आने वाली है लेकिन उन्हें क्या ?
क्योंकि लोगों के चिताओं पर इनकी दाल अच्छी पकती हैं।
यह दोष किसी एक का नहीं हमने भी अपनी जिम्मेदारियां नही निभाई और सरकार ने भी अपनी लापरवाही में कोई कसर तक नहीं छोड़ी।
सरकार तो बस चुनाव कराने में व्यस्त थी और हाँ चुनाव का एक ही लाभ मिला देश को चिताओं की संख्या में वृद्धि, और इस क्रूर महामारी ने अपने पाँव पूरी तरह फैल लिए।
लेकिन सरकार को क्या उनके पास तो आंकड़े मौजूद है और आंकड़े सिर्फ और सिर्फ दर्द को बढ़ाते है किसी का पिता, किसी का बेटा, किसी की माँ, को तो वापस नहीं ला सकते हैं। और ये आंकड़े कितने सही और कितने  गलत हैं ये सभी को पता है।
अब हमारे, आपके, और हम सभी के पास विकल्प बस यही बचा है कि इस महामारी से खुद व अपनों को सुरक्षित रखें और लोगों की हरसंभव मदद करें, जागरूक करें।
तो घबराएं नहीं बस सावधान रहें।    
                                                  धन्यवाद🙏






रविवार, 4 अगस्त 2019

दोस्तों के नाम

सोचा आज कुछ दोस्तों के लिए भी हो जाये।
एक बड़ा ही प्रचलित सवांद याद आ रहा है कि " जब बेटा बड़ा हो जाये तो पिता को उसे अपना बेटा नहीं बल्कि दोस्त समझना चाहिये"।
दोस्ती का तमाम मानवीय रिश्तों के बीच एक अलग मुकाम है। यह भरोसे से पैदा होती है और आप में भरोसा पैदा करती है कि आप अकेले नहीं हैं।
यह अहसास साथ रहता है कि कोई तो है, जिससे बेहिचक अपने सुख-दुख साझा कर सकते है।
यह एक ऐसा रिश्ता है,जो इंसान खुद बनाता है।
बाकी सारे रिस्ते तो बने बनाये मिलते हैं। दोस्ती और दोस्त उम्र के पहले पड़ाव पर ही जीवन मे शामिल हो जाते हैं
चाहे वो बचपन के टिफिन बांट कर खाने वाले दोस्त हों या आम के पेड़ पर निशाना लगाने वाले, होमवर्क आधा छूट जाने पर अपनी कॉपी देने वाले हों या चुगली करने वाले सभी ने इन पलों को हमेशा के लिए यादगार बन दिया। दोस्ती पर  जितना भी लिखा जाए उतना ही कम है, अंत मे वसीम बरेलवी की एक पंक्ति है कि-
शर्तें लगाई जाती नहीं दोस्ती के साथ,
कीजे मुझे कुबूल मिरी हर कमी के साथ।



रविवार, 26 मई 2019

मुमकिन है

                         मुमकिन है
मेरे पहले पंक्ति से ही आप लोगों को पता चल गया होगा कि यहाँ बात वर्तमान लोकतंत्र के सबसे बड़े विजेता की हो रही है।
भरोसा। शायद यही उपयुक्त शब्द होगा जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नेतृत्व वाली सरकार ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान देश के नागरिकों के मन और दिल में जगाया।
 देश के दुश्मनों की आँख में आँख डालकर बात करने की बात हो,या राष्ट्रीय सुरक्षा की बात हो या उज्वला और आयुष्मान जैसी तमाम कल्याणकारी योजनाओं को प्रभावी तरीके से लागू करने की बात हो।
सरकार की कार्यशैली और आत्मविश्वास ने लोगों में यह भरोसा पैदा किया कि नामुमकिन कुछ भी नहीं। हर मोर्चे पर सरकार की साफगोई और निष्ठा ने लोगों का दिल जीत लिया,सब कुछ अच्छा हुआ और जो नहीं हुआ उसके लिए महज पांच साल की समयावधि के तर्क को कुतर्क तो कतई नहीं कहा जा सकता है।
तभी तो लोगों ने इस समयावधि को और बढ़ा दिया है। न सिर्फ बढ़ाया बल्कि इस लायक बनाया कि खुद के विवेक से सरकार सख्त से सख्त फैसले से भी न परहेज करें।,अब जनता को यह लग रहा हैं,कि नामुमकिन कुछ भी नहीं।
क्योंकि अब जनता ही बोलने लगी है,मोदी है तो मुमकिन है। ऐसे में नई सरकार के सामने विभिन्न क्षेत्रों की बड़ी चुनौतियों और उनके समाधान आज बड़ा मुद्दा है। इस जीत पर अटल जी की कुछ पंक्ति:
हार नहीं मानूगा,रार नहीं ठानूगा,
काल के कपाल पे लिखता और मिटाता हूँ,
मैं गीत नया गाता हूँ।