गणतंत्र दिवस राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया का पर्व है और देश का स्वर्णिम भविष्य गढ़ने का अवसर। यह एक राष्ट्रीय महायज्ञ है जिसमें हर नागरिक को अपनी योग्यता एवं सामर्थ्य के अनुसार आहुति देनी है। सत्कर्तव्य की यह आहुति न केवल आत्मिक सुख प्रदान करेगी, अपितु राष्ट्र को सर्वोच्च पद पर प्रतिष्ठापित भी करेगी। "वयं राष्ट्र जागृयाम", यजुर्वेद के इस मंत्र के साथ यह पर्व जनमानस को जागृत कर राष्ट्रभक्ति के लिए प्रेरित करता है। राष्ट्रभक्ति ईश्वर की नवधा भक्ति से कम नहीं होती। अतः मन, वाणी एवं कर्म से हमारा समग्र चिंतन राष्ट्र को समर्पित होना चाहिए।
राष्ट्रभक्ति उस जापानी नागरिक से सीखी जा सकती है, जो रेलयात्रा के दौरान स्टेशन पर फल न देखकर भारतीय संत स्वामी रामतीर्थ के मुख से "शायद इस देश में फल नहीं होते", यह सुनकर अगले ही पल फलों की टोकरी के साथ उनके समक्ष उपस्थित हो जाता है। जब मूल्य पूछा तो विनत भाव से बोला "श्रीमन्! फल स्वीकार कीजिए। यदि मूल्य देना है तो अपने देश में जाकर किसी से मत कहना कि जापान में फल नहीं होते"। जिस देश के नागरिकों में ऐसी राष्ट्रभक्ति हो, वहां के गणतंत्र को कोई खतरा-नहीं हो सकता। गणतंत्र की सफलता एवं देश के स्वाभिमान की रक्षा नागरिकों की उच्च चिंतन दृष्टि से होती है।
गणतंत्र दिवस संविधान की अभ्यर्चना का पर्व है और योगक्षेम की प्राप्ति का साधन। जब विधान के बिना जीवन का उद्देश्य पूर्ण नहीं होता तो राष्ट्र का कैसे हो सकता है? सामाजिक स्वतंत्रता, समानता तथा न्याय का सशक्त आधार होने से ही किसी गणतंत्र की रीढ़ मजबूत होती है। इसके बिना राजनीतिक स्वतंत्रता अधूरी तथा देश का विकास पंगु हो जाता है। गणतंत्र को चिरंजीवी बनाने वाला राष्ट्रीय एकता का एकमात्र साधन यही है।