सुर्खियों में किसान। किसान उगाता है,तो देश खाता है ये तो सिर्फ अब कहने की बात हो गई पर क्या जब कोई किसान मरता है तो देश जानता है। जवाब आप लोंग ख़ुद जानते हैं
और जब एक किसान मरता है तो न ही यह समाचार पत्रों की मुख्य ख़बर होती है और न ही सोशल मीडिया पर इसे देखा जाता है किसान के साथ ही ये ख़बर भी दम तोड़ देती है। और अगर कहीं किसान की ख़बर मिलती भी है तो संपादकीय पृष्ठ पर या कहीं कोने में।
लेकिन वही जब कोई लोकतांत्रिक पार्टी को विजयश्री प्राप्त होती है या किसी नामजद की जेल यात्रा तो पूरा देश इन्हीं खबरों से पट जाता है।
बड़े दुःख की बात है कि 'जो उगाता है वही हर बार क्यो मार खाता है' क्या यही उसकी सजा है।
यहाँ मैं एक बात साफ़ कर देना चाहता हूँ कि न मैं किसी राजनीतिक पार्टी से हूँ ,और न ही किसी किसान मोर्चा दल से, मैं तो उस किसान का बेटा हूँ जो अपना सारा दिन अपनी फसलों को अच्छा करने में लगा देता है और रात में इस डर से नहीं सोता की उसकी फसल बर्बाद न हो जाए, नहीं तो बैंक का कर्ज़ व बेटे की पढ़ाई और पत्नी की दवाई सब रुक जाएगी। और अगर फसले अच्छी हो भी जाये तो क्या बाजार में अच्छे दाम मिल जाएंगे और अगर नहीं मिले तो फिर क्या?
इन्हीं बातों को सोचते हुए उसकी हर सुबह होती है,और खेत फिर उसे अपने बेटे की तरह प्यारे लगने लगते है। और वह पुनः इन्हीं चिताओं में घिरा रहता है कि कही बेटे-बेटी की पढ़ाई न रुक जाए,कहि पत्नी की दवाई न रुक जाए,और अंत में होता क्या है उसकी साँसे ख़ुद ही रुक जाती है।
तब पता चलता है कि बैंक का कर्ज न चुकाने व बाजार में फसल के औने-पौने दाम मिलने से एक और किसान का परिवार व पूरा देश पुनः अनाथ हो गया।
धन्यवाद।
और जब एक किसान मरता है तो न ही यह समाचार पत्रों की मुख्य ख़बर होती है और न ही सोशल मीडिया पर इसे देखा जाता है किसान के साथ ही ये ख़बर भी दम तोड़ देती है। और अगर कहीं किसान की ख़बर मिलती भी है तो संपादकीय पृष्ठ पर या कहीं कोने में।
लेकिन वही जब कोई लोकतांत्रिक पार्टी को विजयश्री प्राप्त होती है या किसी नामजद की जेल यात्रा तो पूरा देश इन्हीं खबरों से पट जाता है।
बड़े दुःख की बात है कि 'जो उगाता है वही हर बार क्यो मार खाता है' क्या यही उसकी सजा है।
यहाँ मैं एक बात साफ़ कर देना चाहता हूँ कि न मैं किसी राजनीतिक पार्टी से हूँ ,और न ही किसी किसान मोर्चा दल से, मैं तो उस किसान का बेटा हूँ जो अपना सारा दिन अपनी फसलों को अच्छा करने में लगा देता है और रात में इस डर से नहीं सोता की उसकी फसल बर्बाद न हो जाए, नहीं तो बैंक का कर्ज़ व बेटे की पढ़ाई और पत्नी की दवाई सब रुक जाएगी। और अगर फसले अच्छी हो भी जाये तो क्या बाजार में अच्छे दाम मिल जाएंगे और अगर नहीं मिले तो फिर क्या?
इन्हीं बातों को सोचते हुए उसकी हर सुबह होती है,और खेत फिर उसे अपने बेटे की तरह प्यारे लगने लगते है। और वह पुनः इन्हीं चिताओं में घिरा रहता है कि कही बेटे-बेटी की पढ़ाई न रुक जाए,कहि पत्नी की दवाई न रुक जाए,और अंत में होता क्या है उसकी साँसे ख़ुद ही रुक जाती है।
तब पता चलता है कि बैंक का कर्ज न चुकाने व बाजार में फसल के औने-पौने दाम मिलने से एक और किसान का परिवार व पूरा देश पुनः अनाथ हो गया।
धन्यवाद।